फिल्में हमारी संस्कृति का आईना होती हैं। भारत ही नहीं पूरे विश्व मे फिल्मों के दीवाने भरे पड़े हैं। फिल्में बनाने का उद्देश्य समाज को कोई सन्देश देना होता है। पुराने समय से ही युवा फिल्मों के अभिनेताओं, अभिनेत्रियों को रॉल मॉडल मानते हैं और उनका आचरण भी करते हैं। भोले भाले युवा जो कि समाज से अच्छे से परिचित भी नहीं होते वो फ़िल्म मीडिया आदि के चरित्रों को फॉलो करते हैं। वर्तमान समय में जब से सभी हाथों में स्मार्ट फोन आया है तब से युवाओं में अनेकों तरह के केरेक्टर्स को फॉलो करने का क्रेज और भी बढ़ गया हैं साथ ही उनकी सोच का दायरा भी बहुत छोटा हो गया है।

किसी भी फिल्म की आलोचना करना ठीक नहीं है किंतु फ़िल्म निर्माताओं को सोचना चाहिए कि हम जो अश्लीलता, हिंसा फल्मों में परोस रहे हैं उसका क्या प्रभाव हमारे देश के युवाओं पर पड़ने वाला है। भारत मे कुछ समय से ऐसी हिंसक फिल्में बन रही है जो कि भारतीय परिवेश के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं है। इन फिल्मों में न तो कानून का सम्मान है और नहीं ही कोई कानून का डर, अभिनेता जिसको चाहे जहां चाहे मार डालता है। कहीं कानून, पुलिस नाम की कोई चीज ही नहीं रह गयी है। पुलिस को केवल नगण्य दृश्यों में इधर उधर फैला सामान बटोरते या अभिनेताओं व माफियाओं के इशारों पर नाचता दिखाया जाता है।

जहां एक और हॉलीवुड फिल्में विज्ञान तकनीकों को अपनी फिल्मों में शामिल करती हैं और एक अच्छे मनोरजन को अपनी फिल्मों में शामिल करने लगी हैं वहीं दूसरी तरफ बॉलीवुड फिल्में बिना सर पैर की स्टोरी शामिल करते हुए अश्लीलता, हिंसा परोसने में लगी हैं। इस तरफ अभिभावकों को ध्यान देना चाहिए। एक और गलत चीज इस से हमारे पसंदीदा अभिनेता, क्रिकेटर धड़ल्ले से करने में लगे हैं वो है पान, तम्बाकू और सट्टे वाली एप्प का प्रचार। हमारे अभिनेताओं को सोचना चाहिए कि आपको देश के इतने सारे नागरिक पसन्द करते हैं और युवा तो फॉलो भी करते हैं। आप ये क्या चीजें देश के युवाओं को सिखा रहे हैं। ये चीजें बहुत छोटी-छोटी हैं किंतु इनके परिणाम बहुत घातक होने वाले हैं।